#Lockdown
शायद किसी से ये छुपा न हो इसकी शुरुवात होती है मार्च 19,2020 से जिसने पूरे वर्ष की लोगों के रहने का तरीका ही बदल दिया वो पहली रात जब ऐलान हुवा की मेरे प्यारे देश वासियों शायद ये वर्ड हर भारतीयों को सुनने की आदत ही पड गई है अब आप अपने ऊपर खुद प्रतिबंध लगाएंगे यानी आप खुद पूरे साल घर में कैद रहेंगे यानी आप खुद हर तरह की मौज मस्ती को त्याग देंगे शायद इतना सब किसी ने नहीं सोचा होगा इसकी शुरुवात हो गई मैं थोड़ा सा रुका देखा सोचा की हैं हो सकता है कोई 1 या फिर 2 महीने की बात होगी ये वबा है जल्दी ही चली जायेगी हम सब ने अपने घरों में रहने का पूरा प्लान कर लिया और रात बीत गई मस्ती से सुबह की सूरज के किरण देखी और दुवा की हम बेहतर दिन में कुछ बेहतर करने के लिए उठ गए है पर फिर एक मन की आवाज आई मेरे देशवासियों यही काम आपको एक हफ्ते करने है क्योंकि देश को बचाना है हमने सोचा की ठीक है एक हफ्ते की तो बात है हम कर लेंगे हफ्ता किसी तरह का बीता बिलकुल अजीब सा लग रहा था कभी न घर में बैठने वाला व्यक्ति अचानक से घर में बैठ जाएं एक बिलकुल एक कैदखाना जैसा ही था। हफ्ते बीतने के बाद फिर वो दिन आया जिसे हमे पूरे 8 दिन से इंतजार था वो था देश के नेता की वोर से एक तोहफा उसे हम अपनी भाषा में #लॉकडॉन कहते है।
लॉकडाउन में हालत और सरकार का रवैया
फिर शुरुवात हो चुकी थी भुखमरी की लाचारी की बेबसी की हजारों लोग जो उत्तरी भारत के प्रवासी मजदूर जो शहरो में जाकर अपनी रोजी रोटी कमाकर अपना घर चला रहे थे वही के कमाई से उनके घर में चूल्हे पर रोटी पकती थी अब बंद होती दिखाई देने लगी फिर भी उन्हें उम्मीद थी की बस चंद दिन की ही बात है फिर सब ठीक हो जायेगा लेकिन उन बेचारों को कहां पता था की ये उनकी मौत का सौदा करने वाली भरी तबाही का एक नमूना है
शहरों के परवासी मजदूर और घर की वापसी
जब खाने पीने की किल्लत हो गई और जन पर बन आई तो मजदूर भाइयों ने अपने वतन का रुख किया उन्हें सरकार से भी कुछ उम्मीद थी शायद की कम से कम रास्ते में मदद ही करदे या फिर घर जाने का कुछ इंतजाम ही कर दे लेकिन उनका ऐसा सोचना बिलकुल गलत था सरकार ने अपना पल्ला झाड़ लिया और आप जिम्मेदारियों से मुंह फेर लिया प्रवासी मजदूर भगवान भरोसे चल दिए और हजारों किलो मीटर की दूरी अपने हौसलों से नाप दी रास्ते के भूख प्यास की सिद्दत्त जो भाइयों ने बर्दास्त की वो तारीफ काबिल था लेकिन उनकी तड़प और हाय ने दिल को झकझोर कर दिया ऐसे ही हजारों भूखों प्यासों में एक ने वो किया जिसको देखकर कोई भी जिंदा इंसान खुद नही रोक पायेगा और मानवता उस दिन अपना दम तोड चुकी थी
जैसे तैैसेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेे मजदूर अपनेेेेेेेेेेेेेेेे घर पहुंचेे अब उनकेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेे सामने खाने नेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेे पीनेे की किल्ला्ल्ला््ला्ल्ल्ला्ल्ला््ला््ला्ल्ला््ला्ल्ल्ला मजदूरों की जिंदगी की अभी मुश्किल खतम नही हुवी थी की उनके सामने रोजगार की कमी सताने लगी क्योंकि अगर वो नही कमाएंगे तो खायेंगे ऐसे कई लोग है जो आज कमाते है तो आज खाते है
कुछ टाइम रुकने के बाद लोग खाने पीने का जुगाड करने लगे
सरकार से उम्मीदी और उसका कर्तव्य
भारत सरकार का जो फर्ज था उसने उस तरह का कोई भी काम नहीं किया जिसके तहत उसकी तारीफ की जा सकती है बल्कि उसने लोगो को मरने के छोड़ दिया औरातननिर्भर भारत का नारा देकर खुश हो गई थोड़ी बहुत मदद भारत सरकार ने की लेकिन इससे कही ज्यादा के हकदार थे भारत वासी बस चने का दाल और कुछ चावल देने से भर से ही घर नही चलता उसके लिए बहुत कुछ का इंजन करना पड़ता है
सरकार अपनी इस नीति में हमेशा लोगो को पर्तादित ही किया है
भारत सरकार को इतने बड़े लोकतंत्र में और आबादी के लिहाज से दुनिया का सबसे बड़ा मुल्क होने के नाते बिना किसी प्लानिंग के इतना बड़ा कदम उठा लेना निहायत ही बेवकूफी भरा कहा जा सकता है अगर सरकार को लॉकडोन लगाना ही था कम से कम 1 हफ्ते पहले लोगों को बता देती की हम भारत की सुर्रछा के नाते और बीमारी ज्यादा न फैले इसलिए लॉकडॉन के सिवा कोई रास्ता नहीं है उससे लोग अपनी जरूरत की चीज इक्ट्ठा कर लेते और इतनी भयावह इस्थी पैदा न हो पाती
मानव के अधिकार की अनदेखी
एक इंसान होने के नाते हमारे भी कुछ अधिकार है जो हमको अधिक सुरक्षित और सरकार को अधिक जवाबदेह बनाते है जैसे खाने पीने का अधिकार ,जीवन जीने का अधिकार और सूचना का अधिकार जो के समय पर नहीं मिला
बरबाद होता कारोबार
कारोबार जो हमारी रीड की हड्डी के समान होती है वो बिलकुल खत्म होने की कगार पर आ गई थी मानो ऐसा पूरी दुनिया बैठ से गई है और अब कुछ रुक सा गया है पूरी दुनिया के शेयर मार्केट और सारे कारोबारी मामले खत्म होने के कगार पर थे
इसका असर क्या हवा
कारोबार के बंद होने से बेरोजगारी बढ़ी और क्राइम बढ़ना लगा लॉकडन में भी कई तरह की क्राइम आसमान छू रही थी जिसका कोई इलाज नहीं था एक रिपोर्ट के मुताबिक लॉकडॉन मे घर की महिलाओ पर उनके घर के पुरुषों के द्वारा अधिक मारपीट की गई और अधिक बर्बरता दिखाई गई
संछिप्त टिप्पणी
यानी कुल मिलाकर अगर सोच और समझकर सरकार द्वारा सही फैसला लिया गया होता तो आज हमारी इस्थि कुछ और होती सिर्फ शासक का होना ही ठीक नही है बल्कि शासक को चुनने वाला भी समझदार होना चाहिए ।
सिच्छा पर क्यों प्रभाव पड़ा ?
देश की सिच्छा व्यवस्था एक दम से उखड़ गई है पूरे वर्ष बच्चो को पढ़ाई लिखाई बिलकुल थाप सी गई थी शहरो के बच्चे थोड़ी बहुत तो पढ़ लिख कर अपना कोर्स पूरा कर लिया लेकिन ग्रामीण छेत्र के स्टूडेंट पूरे साल कोई फायदा नही ले पाए और जो कुछ पढ़ा था भी वो भी खतम हो गया
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